गोंड कलाकार
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- धनइया बाई
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- इंदुबाई मरावी
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- मयंक कुमार श्याम
- मोहन सिंह श्याम
- ननकुसिया श्याम
- नर्मदा प्रसाद टेकम
- निक्की सिंह उरवेटी
- प्रदीप मरावी
प्रदीप मारावी – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार
प्रदीप मारावी ने 20 वर्ष की आयु में कैनवास पर चित्रकारी शुरू की। उनकी माता, कौशल्या सुस्थापित गोंड परधान कलाकारों, ननकुसिया तथा सुभाष व्यास की बड़ी बहन हैं। तथापि, प्रदीप को जंगढ सिंह श्याम से प्रेरणा मिली जिन्हें वह अपना मार्गदर्शक मानते हैं। प्रदीप अपना अध्ययन पूरा करने के बाद ऑफिस की नौकरी करना चाहते थे। किंतु जंगढ सिंह श्याम को प्रदीप की क्षमता पर पूरा भरोसा था क्योंकि उन्होंने पतनगढ़ में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय (आईजीआरएमएस) भोपाल द्वारा 1997 में आयोजित कला और शिल्प शिविर में प्रदीप द्वारा लकड़ी पर की गई नक्काशी देखी थी। प्रदीप ने उस पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर देवी अष्टांगिनी माता तथा देव बड़ादेव की मूर्तियों को लकड़ी से तराशा था जहां ठाकुर देव की पूजा की जाती थी। प्रदीप का मानना है कि उस स्थान की पवित्रता से उनकी नक्काशी इतनी अधिक आकर्षक हो गई थी कि इससे जंगढ सिंह का ध्यान खींच गया।
2001 में प्रदीप वापस भोपाल आ गए। जब उन्हें पता चला कि जंगढ सिंह श्याम नहीं रहे, तो सबकुछ बदल गया। यह खबर एक ऐसे आघात के रूप में उनके सामने आई जिससे वह कई दिनों तक वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सके। जंगढ की दो पेंटिंग उनके किराये के मकान पर टंगी हुई थी जो घर के मालिक को कलाकार की ओर से उपहार थे। मकान मालिक ने प्रदीप को पेंटिंग उन्हें अपने पास रखने के लिए धीरे से बोलते हुए सौंपी। उसके बाद से ये दोनों पेंटिंग उनके लिए शिक्षक बन गईं। पहली पेंटिंग एक वृक्ष की थी जिस पर अनेक पक्षी फुदक रहे थे। दूसरी पेंटिंग में काकझकोरा (पक्षियों को डराने वाला) को चित्रित किया गया था। प्रदीप ने दीवार पर उन्हें टांगा और उसके नीचे बैठकर उन्होंने अपनी पेंटिंग पर कार्य किया। वह अपने ग्राम, घर-का-मटटा, विस्तृत भू-भाग, वृक्षों, मोरों, बारिशों, तालाबों के बारे में सोचते थे और पोस्टर रंगों से इन चित्रों को पुन: बनाया।
प्रदीप मारावी की परधानों की उत्पत्ति से संबंधित चित्र आईजीआरएमएस के म्युजियम ऑफ मैनकाइंड की दीवार पर टंगी हुई है जहां वह कार्य करते हैं। हालांकि एक कलाकार के रूप में उनकी यात्रा 7 वर्ष पूर्व ही शुरू हुई, रूपों और रंगों के उनके कल्पनात्मक इस्तेमाल से उन्हें समकालीन गोंड कला के प्रतिस्पर्धात्मक जगत में अपने-आप के लिए एक मुकाम बनाने में पहले ही मदद मिली है।
गोंड कलाकार
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