हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 31


IV/ A-2030

शान्तिनिकेतन

5.9.39

श्रद्धास्पदेषु,    

              सादर प्रणाम!

       कृपा-पत्र दोनों मिल गये। बड़े दादा के विषय में गुरुदेव ने कहा कि मैं उनके इतना निकट यहाँ हूँ कि ऐसे मौकों के उपयुक्त चीज़ लिखने में बिल्कुल अयोग्य हूँ। मुझसे पक्षपात हो जायेगा। देखता हूँ, उनकी जीवन स्मृति में काम की कोई चीज़ मिल जाय तो अनुवाद कर लूँगा। आप काम बाँट दीजिये। मुझे क्या करना होगा और कब तक? चन्दोला जी को क्या करना होगा और कब तक। क्षिति बाबू से लिखने को कह चुका हूँ। मल्लिक जी भी थोड़ा-सा अपना संस्मरण लिख रहे हैं। गुरुदेव ने हेमलता देवी का नाम सुझाया है। वे आ जायेंगी तो उनसे भी कुछ लिखाने का प्रयत्न कर्रूँगा। पुस्तक जो होगी उसे हिन्दी भवन की ओर से निकालने की बात उठी तो रथी बाबू के मन में संकोच का-सा भाव दिखाई दिया। उन्हें भय हो रहा था कि शायद लोग समझने लगें कि हिन्दी भवन टैगोर फेमिली के विज्ञापन का साधन बनाया जा रहा है। यह बात मुझसे सुधाकान्त बाबू ने कही है। रथी बाबू ने स्वयं अभी तक कुछ नहीं कहा। खैर

       आप कब तक आयेंगे? चित्र के उद्घाटन के संबंध में क्या-क्या करना चाहिये। कनौडिया जी को भी एक पत्र लिखकर जता देना चाहिये। एक चित्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का भी मिल जाने की उम्मीद है। हो सका तो दोनों को उद्घाटन का उत्सव एक दिन ही कर लेंगे। हिन्दी भवन के विषय में अक्टूबर के वि.भा. में लिखने की कोशिश कर्रूँगा। पहले भाग में आपकी यात्राओं और मनोविनोदों की चर्चा कर्रूँगा। इसमें स्व. रामनारायण जी का ज़रुर जिक्र होना चाहिये। नि:सन्देह वे पर्दे की ओट में से उक्त कार्यों का संचालन कर रहे थे। उन्होंने अगर आपको बहुत-सी जवाबदेहियों से मुक्त न किया होता तो कौन जानता है क्या होता। एण्ड्रूज साहब तो होंगे ही। सुधाकान्त के प्रयत्नों का भी जिक्र होना चाहिये। पर मैं इस अंश को उतना सजीव नहीं लिख सकूँगा। आप उसे रिटच कीजिये। दूसरे अंश में मैं अपने विचारों को लिखूँगा कि मैं क्या चाहता हूँ। इस विषय में आपकी विशाल भारत वाली टिप्पणी और एण्ड्रूज साहब वाला व्याख्यान आधार का काम कर सकते हैं। फिर गुरुदेव के परामर्श तो हैं ही।     

       इस पत्र के साथ ही आपको एक कविता मिलेगी। इन कविताओं में मुझे एक अभिनव सौन्दर्य दिख पड़ा है। ये अगर आपको भी पसन्द आ जायँ तो वि. भा. में एकाध को प्रकाशित करें।

       मेरा एक लेख भी जा रहा है। मैंने नये ढंग से, कुछ हल्के-से ढंग में, समालोचना का प्रयास किया है। आपको यह ढंग पसन्द हो तो लिखिये। अगर आपको पसंद आया तो कुछ साहित्यिक कार्यकर्ताओं (व्यक्तियों नहीं) के नाम से चिट्ठी लिखने की सोच रहा हूँ। जैसे समालोचक जी के नाम, कवि जी के नाम, सम्पादक जी के नाम। इनमें यथा संभव काम की बातें ही होंगी पर हलके ढंग से लिखी हुई। हाँ, हिन्दी भवन का अभी मंदिर ही बना है। देवता की प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है। वही असली चीज़ है।

       राय प्रवीण-पुस्तकालय की नींव कब डाल रहे हैं मेरे विचार से गढ़ कुण्डेश्वर का भेड़िया-घर उसके लिये उपयुक्त स्थान है। जब उक्त शुभ तिथि की सूचना मिलेगी तब मैं प्रमाणित कर दूँगा कि आपका यह अंदेशा गलत है कि रायप्रवीण की भूमि पर मेरी अकृपा है।

       यहाँ और सब कुशल है। चंदोला जी और साहानी जी आपको प्रणाम कह रहे हैं। यहाँ हिन्दी समाज में एक दुर्घटना हो गई है। हिन्दी समाज का असिस्टेंट सेक्रेटरी हरिशंकर नाम का एक विद्यार्थी था। गत बुधवार को वह पानी में डूब कर मर गया। हम उसकी स्मृति के रुप में एक निबंध-प्रतियोगिता और पदक देने की व्यवस्था कर रहे हैं। बड़ा होनहार लड़का था।

       आशा है, आप सानंद होंगे।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी  

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली