नर्मदा प्रसाद टेकम – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार

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नर्मदा प्रसाद टेकम जंगढ सिंह श्‍याम के कुछ माह बाद सन 1983 में भोपाल आए। उनकी प्रतिभा की खोज समकालीन कलाकार पतनगढ़ के जे. स्‍वामीनाथन के एक छात्र द्वारा की गई थी।

बचपन में जब नर्मदा जानवरों को जब सिंगनी नदी के तट पर चराने ले जाते थे तो वह बालू में खुद के छाप बनाकर तथा एक छड़ी से मिट्टी में चित्र बनाते थे। उन्‍होंने काली तथा पीली गीली मिट्टी से अपने घर की दीवारों पर चित्रकारी शुरू की। उन्होंने तरह तरह के विषयों पर चित्र बनाए हैं जैसे मनुष्‍यों, पशुओं तथा पक्षियों से लेकर हनुमान सदृश देवताओं के चित्र। रंग के लिए वह पत्तियों और पुष्‍पों से निकाले गए वर्णकों का इस्‍तेमाल करते थे। कालांतर में उनकी विषय-वस्‍तुएं बदल गई हैं, और अब वह मुख्‍यत: बाघों, हिरण, पक्षियों तथा साही के चित्र बनाते हैं।

नर्मदा प्रसाद ने आदिवासी लोक कला तथा तुलसी साहित्‍य अकादमी द्वारा प्रकाशित डा. धमेंद्र परे की द्विभाषी पुस्‍तक गोंड देवलोक की विभिन्न देवियों के चित्र बनाए हैं जिनमें बाहरी बटोरनदेवी जो निर्धनता और दु:ख को दूर करती है; चौसठ जोघन, जो चौसठ दिशाओं को नियंत्रित करती है; बांगरी देवी प्रेत पकड़ने वाली; गल्‍हारिण देवी, मार्गों की संरक्षक; तिप्‍ताहिन देवी, जो हमें जादू-टोना से बचाती है : बदावन देवी, समृद्धि की देवी के चित्र सम्मिलित हैं।

नर्मदा प्रसाद ने अपनी चित्रकारी को प्र‍दर्शित करते हुए व्‍यापक यात्रा की है और वर्तमान में, आदिवासी लोक कला परिषद में एक कलाकार के रूप में कार्य करते हैं। वर्ष 2006 में नर्मदा प्रसाद टेकम को मध्‍य प्रदेश सरकार द्वारा शिखर सम्‍मान से पुरस्‍कृ‍त किया गया।