सुखंडी व्याम – मध्य प्रदेश के गोंड कलाकार

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सुखंडी व्‍याम की मिट्टी तथा लकड़ी की कृतियों से दर्शक गोंड की सांस्‍कृतिक परंपराओं के बारे में और भी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्‍सुक होते हैं। उन्‍होंने आईजीआरएमएस में ओपन एयर प्रदर्शनी ‘‘पौराणिक कथा’’ में अपने पिता प्‍यारेलाल व्‍यास के साथ लिलार कोठी बनायी थी। सुखंडी ने बहुत ही कम उम्र में अपने चाचा सुभाष व्‍याम से लकड़ी पर नक्‍काशी करना सीखा था। 1991 में पतनगढ़ में कला और शिल्‍प के क्षेत्र में आईजीआरएमएस द्वारा एक कार्यशाला आयोजित की गई थी जिसमें आठ वर्षीय सुखंडी ने हिस्‍सा लिया था। मिट्टी में उनके कार्य को सभी के द्वारा पसंद किया गया। सुभाष व्‍याम उसके बाद उन्‍हें भोपाल ले गए और लकड़ी पर कार्य करना भी सिखाया। तब से सुखंडी लकड़ी पर कार्य करते आ रहे हैं और विभिन्‍न देवकुलों, धार्मिक अनुष्‍ठानों, पशुओं तथा विभिन्‍न लोक कथाओं के पात्रों के भी चित्र बनाते आ रहे हैं। सुखंडी व्‍याम ने देश में विस्‍तृत रूप से यात्रा की है और उन्‍हें गोंड संस्‍कृति के बारे में प्रश्‍नों का उत्‍तर देना अच्‍छा लगता है। उनके इष्‍ट देव मल्‍लु देव हैं जो बच्‍चों को पेट से जुड़ी बीमारियों से रोगमुक्‍त करते हैं। जब सुखंडी के बच्‍चे बीमार पड़ते हैं तो सुखंडी मल्‍लु देव से प्रार्थना करते हैं जिनकी उन्‍होंने लकड़ी में परिकल्‍पना तथा नक्‍काशी की थी। हालांकि उनके देवकुल का कोई आकार नहीं है, तथापि, समकालीन कलाकारों ने उन्‍हें एक रूप देते  हुए परिकल्पित किया है। कभी-कभी सुखंडी लकड़ी की आकृति बनाते हैं जो गोंड संस्‍कृति से संबद्ध नहीं होती है। एक बार एक विदेशी व्‍यक्ति ने उनसे लकड़ी में एक ऐसे कलाकार को सृजित करने के लिए कहा जिनकी प्रगाढ़ता को कैद किया जा सके। सुखंडी ने ‘कलाकार’ को पांच फीट लंबा बनाया और उन्‍हें चार भिन्‍न-भिन्‍न आकारों के ब्रश पकड़ने के लिए चार भुजाएं दीं।

सुखंडी ने कलाकार से जुड़ा हुआ महसूस किया क्‍योंकि कलाकार तो कलाकार होता है चाहे वह कहीं से भी हो।