The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
015 -  Somadatta / सोमदन्त

हिमालय के वन में निवास करते एक सन्यासी ने हाथी के एक बच्चे को अकेला पाया। उसे उस बच्चे पर दया आयी और वह उसे अपनी कुटिया में ले आया। कुछ ही दिनों में उसे उस बच्चे से मोह हो गया और बड़े ममत्व से वह उसका पालन-पोषण करने लगा। प्यार से वह उसे ठ सोमदन्त' पुकारने लगा और उसके खान-पान के लिए प्रचुर सामग्री जुटा देता।

एक दिन जब सन्यासी कुटिया से बाहर गया हुआ था तो सोमदन्त ने अकेले में खूब खाना खाया। तरह-तरह के फलों के स्वाद में उसने यह भी नहीं जाना कि उसे कितना खाना चाहिए। वहाँ कोई उसे रोकने वाला भी तो नहीं था। वह तब तक खाता ही चला गया जब तक कि उसका पेट न फट गया। पेट फटने के तुरन्त बाद ही उसकी मृत्यु हो गयी।

शाम को जब वह सन्यासी वापिस कुटिया आया तो उसने वहाँ सोमदन्त को मृत पाया। सोमदन्त से वियोग उसके लिए असह्य था। उसके दु:ख की सीमा न रही। वह जोर-जोर से रोने-बिलखने लगा। सक्क (शक्र; इन्द्र) ने जब उस जैसे सन्यासी को रोते-बिलखते देखा तो वह उसे समझाने नीचे आया। सक्क ने कहाँ, हे सन्यासी ! तुम एक धनी गृहस्थ थे। मगर संसार के मोह को त्याग तुम आज एक सन्यासी बन चुके हो। क्या संसार और संसार के प्रति तुम्हारा मोह उचित है" सक्क के प्रश्न का उत्तर उस सन्यासी के पास था। उसे तत्काल ही अपनी मूर्खता और मोह का ज्ञान हो गया। मृत सोमदन्त के लिए उसने तब विलाप करना बन्द कर दिया। 

O nce a wealthy Brahmin of Varanasi renounced the life of a house-holder and led the life of an ascetic and retired in a forest in the Himalayas. There, he found a baby elephant left alone in the forest. He brought it to his hermitage and took care of him. Soon, he developed attachment for the baby elephant and called him Somadatta out of affection. He also reared him with tender care and fed him fruits and food.

One day, when the ascetic was away the baby elephant ate too much and died. Upon his return the ascetic found him dead. He was overwhelmed with sorrow; and stopped all his activities.

At that time, the Bodhisatta was born as Sakka. Pious and compassionate, he notice the sorrow of the ascetic from heaven and thought of helping him. So, he descended and taught him not to grieve as his grief was due to attachment; as all grief is due to attachment. Further, he reminded him of his vow to renounce the worldly life; and his family.    So, he asked him what merit would he partake by leading the life of an ascetic.

Sakkas teaching reopened his eyes and made him realise his infatuation for the dead animal. The acknowledgement of the infatuation helped him overcome his grief.

(This story was related with reference to a monk, who had ordained a novice; and was aggrieved upon his death. Somadatta is identified with the novice; and the monk with the ascetic).

 

See Somadatta Jataka Pali No.410.


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