The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
018 -  The Story of Nigrodha Deer / निग्रोध - मृग

वाराणसी के वनों में कभी एक सुवर्ण मृग रहता था। उसकी आँखों रत्न-सी चमकीली ; सींग रजत की कांति लिए हुए तथा उसका शरीर अन्य हिरणों से अधिक बड़ा और सुंदर था। वह पाँच सौ मृगों का राजा था और उसे निग्रोधराज के नाम से पुकारा जाता था। उसी वन में उसी के सदृश एक और हिरण रहता था। वह भी पाँच सौ मृगों का राजा था। उसका नाम साखा था।

उन दिनों वाराणसी-नरेश को हिरण का मांस बहुत प्रिय था। हर रोज उसे हिरण के मांस के नये-नये व्यंजन खाने का शौक था। राजा के अनुचर इससे बहुत परेशान रहते थे, क्योंकि हिरण बड़े चौकन्ने और बड़ी तेज चौकड़ियाँ भर क्षण भर, में आँखों से ओझल हो जाते थे। अत: एक दिन राजा के आदमियों ने प्रतिदिन हिरण के पीछे न भागने का एक निदान ढूँढ़ निकाला। उन लोगों ने वन से नगर को जाने वाली एक पगडंडी को छोड़ सारे को चारों तरफ से घेर लिया और ढोल-बाजे के साथ वन केन्द्र को बढ़ने लगे। तब सारे मृग नगर को जाने वाली पगडंडी से होते हुए राजा के एक उद्यान में इकट्ठे हो गये। जैसे ही सारे मृग उद्यान में पहुँचे, लोगों ने उद्यान-द्वार बन्द कर दिया। उन्हीं मृगों के बीच दो स्वर्ण-मृग भी थे। राजा ने जब उनकी चर्चा सुनी तो स्वयं भी वह उन्हें देखने आया तथा उनकी विशिष्टता के कारण उन्हें प्राण-दान दे दिया।

उस दिन के पश्चात् जब भी राजा के अनुचर किसी हिरण को मारने आते तो उनके आगमन से डर कर हिरण जहाँ-तहाँ भाग-दौड़ करने लगते जिसके कारण एक हिरण के स्थान पर अनेक हिरण मारे जाते या घायल हो जाते। इस आपदा से बचने के लिए हिरणों ने एक सभा की और तय किया कि प्रतिदिन एक हिरण राजा के घात-स्थान पर स्वयं जा कर अपना बलिदान करे। राजा के अनुचरों को भी हिरणों के सहयोग से प्रसन्नता हुई और वे केवल आये हुए वध्य हिरण के ही प्राण हरते थे।

एक दिन एक मादा हिरणी की बारी आयी। उसके पेट में एक नन्हा हिरण पल रहा था। चूँकि वह साखा हिरण की झुण्ड में रहती थी इसलिए वह अपने राजा के पास जाकर अपने बदले किसी और को भेजने की प्रार्थना करने लगी। शाखा हिरण ने उसकी बात को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि कानून में परिवर्तन संभव नहीं था। रोती बिलखती वह हिरणी फिर निग्रोधराज के पास पहुँची और उसके सामने भी अपनी प्रार्थना दुहरायी। निग्रोधराज ने तब उसकी सहायता के लिए अपने प्राणों की बलि देना उचित समझा।

अगले दिन जब राजा के अनुचरों ने वध्य-स्थान पर एक स्वर्ण मृग को मरने के लिए तैयार खड़ा पाया तो उक्त घटना की सूचना तत्काल राजा को पहुँचायी। प्राण-दान पाकर भी वह हिरण क्यों मृत्यु के लिए तत्पर था इसका कारण राजा ने जानना चाहा। इसलिए उसने तत्काल घटना-स्थल पर पहुँच कर निग्रोधराज से उसकी मृत्यु की तत्परता का कारण जानना चाहा। निग्रोधराज ने तब उसे गर्भिणी हिरणी की कथा सुनायी। जिसे सुनकर राजा ने उसके साथ उस गर्भवती हिरणी को भी अभय-दान दिया। निग्रोधराज ने फिर अन्य हिरणों के विषय में पूछा कि उनके प्राणों के लिए राजा क्या करना चाहेंगे। राजा ने तब कहा, " उन्हें भी प्राण-दान प्राप्त होगा"। निग्रोध ने पूछा, " शेष जानवरों के प्राणों का क्या होगा?" राजा ने कहा, " उन्हें भी जीवन-दान मिलेगा।" मृग ने फिर पंछी और जलचरों के प्राणों के विषय में भी पूछा। राजा 

ने तब अपने राज्य में रहने वाले समस्त पक्षी और मत्स्य आदि की अवध्यता की घोषणा कर दी।" और जब तक वह राजा जीवित रहा, उसके राज्य में किसी भी जीव-जन्तु की हत्या नहीं की गई।

deer and the king's archers, the Thai version

O nce the Bodhisattva was born as a golden deer in a forest of Varanasi. His eyes were like round gems; horns like silver; and he was bigger in size than other deer. He headed a band of five hundred deer and was called Nigrodharaja. In the same forest there lived another golden deer Sakha, who, too, headed a band of five hundred deer.

As the king of Varanasi was very fond of the deer meet, he asked his men to bring him at least one deer every day. His men, one day, decided to catch all the deer of the forest and bring them to the royal garden to please the king. So, they besieged the forest from all directions by keeping the garden-path clear and approached the centre with noise and drum-beating. No wonder all the deer were forced to enter the royal park and were caged inside. When the king saw the two golden deer, too, in his park he was very pleased. Further, charmed by their elegance he granted them immunity from being killed. But no other deer enjoyed the similar privilege. So, whenever a royal hunter entered the park to kill a deer all the deer would run helter-skelter, which caused more damages to the herd. So, the two deer kings convened a meeting and resolved that one deer from each group had to go to the hunter for the slaughter on every alternate day. The agreement was, however, to be followed rigorously.

The king shooting the deer,  the Thai version

One day a pregnant doe belonging to Sakhas herd had her turn for the slaughter. As she was pregnant, she prayed her leader to postpone her turn until the young one was born. Sakha was inconsiderate and did not pay any attention to her request. Wailing, she went to Nigrodha, who complied with her request out of sheer compassion.

Next day, Nigrodha himself went to the execution block and showed his readiness for the slaughter. Surprised at the presence of the golden deer eagerly awaiting its slaughter despite the immunity granted, the kings men reported the matter to the king.

The king was also surprised. He immediately arrived at the park and asked the deer king to explain the cause for his willingness to be killed. Nigrodha then said, Sir! A pregnant doe came to me and prayed to let her turn fall on the other. So, to save the life of two deer, I decide to get killed.

 

The king granting amnesty to the two deer,  the Thai version

The king was moved by his compassion. He said, O deer king! I am impressed with your loving kindness. I spare the life of the doe and yours.

Nigrodha said, I thank you for that. But what shall happen to other deer, here?

I spare their lives too, said the king.

The deer in your park shall thus gain immunity; but then what will happen to the deer living in your kingdom, queried the deer king.

I will spare their lives too, said the king.

Sir! The deer will be safe in your territory; but then what will happen to other four-footed animals, Nigrodharaja asked.

From now onwards, I spare their lives, too, promised the king.

Sir, four-footed animals will thus be saved; but then what would happen to the birds, asked the deer king in his nave dignity.

The king said, I spare their lives too, answered the king.

Sir! Birds will thus be safe, but then what will happen to the fishes, questioned the deer.

I save their lives too, O deer king, the king assured

Thus the good deer by his compassion saved the lives of all the animals of the kingdom.

(Anand is identified with the king of Varanasi; and Devadatta with Sakha deer).

 

See Nigrodha-Miga Jataka Jataka Pali No.12.

 


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