The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
033 -  The Story of a Snake Charmer / सपेरी और बंदर

The snake charmer showing tricks with a snake and a monkey, Amravati

हज़ारों साल पहले वाराणसी में एक सँपेरा रहता था। उसके पास एक साँप और एक बंदर था। लोगों के सामने वह उनके करतब दिखा जो पैसा पाता उससे ही अपना गुजर-बसर करता था। उन्हीं दिनों वाराणसी में सात दिनों का एक त्यौहार मनाया जा रहा था, जिससे सारे नगर में धूम मची हुई थी। सँपेरा भी उस उत्सव में सम्मिलित होना चाहता था। अत: उसने अपने बंदर को अपने एक मित्र के पास छोड़ दिया जिसके पास एक विशाल मक्के का खेत था। मक्के का खेतिहर बंदर की अच्छी देखभाल करता और समय पर यथायोग्य भोजन भी कराता रहा।

सात दिनों के बाद वह सँपेरा वापिस लौटा। उत्सव का मद और मदिरा का उन्माद उस पर अब भी छाया हुआ था। खेतिहर से जब अपने बंदर को वापिस लेकर वह अपने घर को लौट रहा था तो अकारण ही उस बन्दर को एक मोटे बाँस की खपची से तीन बार मारा जैसे कि वह एक ढोल हो। घर लाकर उसने बंदर को अपने घर के पास के एक पेड़ से बाँध दिया और मदिरा और नींद के उन्माद में पास पड़ी खाट पर बेसुध सो गया।

बंदर का बंधन ढीला था। थोड़े ही प्रयत्न से उसने स्वयं को रस्सी से मुक्त कर लिया और पास के पेड़ पर जा बैठा।

सँपेरे की जब नींद टूटी और बंदर को उसने मुक्त पाया तो पास बुलाने के उद्देश्य से उसने उसे पुचकारते हुए कहा, "आ जा ओ अच्छे बंदर! आ जा मेरा बंदर महान्!!" बंदर ने तब उसके प्रत्युत्तर में कहा-"ओ सँपेरे! वृथा है तुम्हारा यह गुणगान क्योंकि बंदर होते नहीं महान्।" फिर वह बंदर तत्काल ही वहाँ से उछलता कूदता कहीं दूर निकल गया और सँपेरा हाथ मलता ही रहा गया।

O nce, there lived a snake-charmer in the city of Varanasi. He had a snake and a monkey. And he used to show tricks with them to earn his livelihood. One day, when the entire city was involved in the celebration of seven-day festival, he left the monkey with a corn factor to participate in the festivities.  

The corn factor treated the monkey nicely. He took a good care of the animal and offered him all sorts of good food. On the seventh day, when the snake charmer returned after his merriment he was still drunk and was not in his usual senses. He took his monkey back from the corn-factor and beat him three times with a piece of bamboo as if it were a joke. He then tethered him in the garden and fell asleep. The monkey, however, escaped and climbed on a mango tree in the garden.

When the snake charmer woke up and found the monkey sitting on a tree and enjoying the fruits, he coaxed him with sweet words and asked him to come back. So, he said, Come my nice one.  

The monkey then said,

Thy praises are meaningless and unsound

As a nice monkey is never to be found.

Reciting these stanzas the monkey joined the band of other monkeys and never returned to his master.

(The corn factor, who earned his livelihood by selling corns righteously and treated the monkey nicely, was the Bodhisatta.)

 

See Ahigundika Jataka Jataka Pali No. 365

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