The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
073 - Maha Mayas Dream / महामाया का स्वप्न

सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया और कपिलवस्तु के राजा सुद्धोदन की धर्म-पत्नी शक्यवंसीय अंजन की पुत्री थी, जो देवदह के प्रमुख थे। उनकी माता का नाम यशोधरा था। किन्तु थेरी गाथा उच्कथा के अनुसार उनके पिता का नाम महासुप्पबुद्धा था और अवदान कथा के अनुसार उनकी माता का नाम सुलक्खणा था।

महामाया के दो भाई थे और एक बहन (बहन महा पजापति भी, राजा सुद्धोदन से उसी दिन ब्याही गयी थी जिसदिन महामाया से उन का विवाह हुआ था।)

महामाया में बुद्ध की माता बनने की सारी योग्यताएँ थीं। उन्होंने पञ्चशील - अर्थात प्राणहानि, चोरी, वासनात्मक कुमार्ग, झूठ और मद्यपान - न करने का सदैव पालन किया था। उसके अतिरिक्त दस पारमियों को सिद्ध करने के लिए वे एक हज़ार वर्षों तक संघर्षरत भी था।

जिस दिन गौतम उनके गर्भ में प्रविष्ट हुए उस दिन उन्होंने उपवास किया हुआ था। रात में उन्होंने एक स्वप्न देखा, स्वप्न में "चातुर्महाराजा अर्थात् चार देव गण उन्हें उठा हिमालय पर ले जाते हैं और एक साल वृक्ष के नीचे रखे हुए एक सुन्दर पलंग पर लिटा देते हैं। तब उन देवों की पत्नियाँ आती हैं और उन्हें अनोत्तत सरोवर में वहाँ स्नान कराती हैं फिर वे उन्हें दिव्य - परिधान धारण करा एक अद्भुत स्वर्ण-प्रासाद की दिव्य शय्या पर लिटा देती हैं। तभी एक सफेद हाथी अपनी चमकदार सूँड में एक ताज़ा सफेद कमल ले दाहिनी दिशा से उनके गर्भ में प्रवेश करता है।" 

वह दिन उत्तर आषाढ़-पूर्णिमा का था, और उस दिन से सात दिनों का महोत्सव भी नगर में प्रारम्भ हो चुका था। राजा सुद्धोदन भी उस रात महामाया के समीप नहीं आ सके थे।

अगले दिन महामाया ने जब महाराज को अपने दिव्य स्वप्न से अवगत कराया तो उन्होंने राज-ज्योतिषियों की राय उस स्वप्न पर जाननी चाही। ज्योतिषियों ने कहा था, "रानी के गर्भ में प्रविष्ट बालक या तो चक्रवत्तीं सम्राट बनेगा या बुद्ध।" 

T he name of the mother of Gotama was Maya, often called Mahamaya. She was the daughter of the Sakyan Anjana of Devadaha and mother Yasodhara the daughter of Jayasena. (However, according to the Therigatha Atthakatha (141) her father was Mahasuppabuddha; and according to the Apadana (ii.538) her mother was Sulakkhana). She had two brothers and one sister. She and her sister Maha Pajapati were married to Suddhodana, who was the king of Kapilavatthu.

Mahamaya possessed every virtue of being the mother of the Buddha. She never violated the practice of panchasheela (five vows of righteous conduct, which means refraining from killing; steeling; sensual pursuits, lies and intoxicants). Further, according to the tradition she had practised parami for one thousand years; and was thus suitable to become the mother of the Buddha.

The day when the Buddha was to be conceived she kept fast; and at night she had a dream. In her dream she saw that the four devas, called the Chatumaharajas, took her to the Himava and placed her on a bed under a Sal tree. Then the wives of the devas came and bathed her in the Lake Anottata and dressed her in divine robes. They then took her to a golden palace and laid her in a magnificent couch, where the Bodhisatta in the form of a white elephant holding a white lotus in his resplendent trunk entered her womb through her right side. That was a full-moon day of Uttara Asalha to mark the beginning of a seven-day festival. She, too, had participated in the festival. Furthermore, on that day she did not sleep with her husband.  

Mahamaya musing at her dream

Next day, she told the dream to the king, who in turn consulted the court astrologers, and from them heard the prophecy that the child would either be universal monarch or a Buddha.

King Suddhodana and Mahamaya analysing the dream

 


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