The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
022 -  The Feast of the Dead / श्राद्ध-संभोजन

श्राद्ध-भोज के लिए किसी ब्राह्मण ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरंभ की। उसके शिष्य बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये। नहाने के समय बकरा एकाएक बडी जोर से हँसने लगा ; फिर तत्काल दु:ख के आँसू बहाने लगा। उसके विचित्र व्यवहार से चकित हो कर शिष्यों ने उससे जब ऐसा करने का कारण जानना चाहा तो बकरे ने कहा कि कारण वह उनके गुरु के सामने ही बताएगा।

ब्राह्मण के सामने बकरे ने यह बतलाया कि वह भी कभी एक ब्राह्मण-पुरोहित था और एक बार उसने भी एक बकरे की बलि चढ़ायी थी, जिसकी सज़ा वह आज तक पा रहा था। तब से चार सौ निन्यानवे जन्मों में उसका गला काटा जा चुका था और अब उसका गले कटने की अंतिम बारी है। इस बार उसे एक बुरे कर्म का अंतिम दंड भुगतना था, इसलिए वह प्रसन्न होकर हँस रहा था। किन्तु वह दु:खी हो कर इसलिए रोया था कि अगली बार से उस ब्राह्मण के भी सिर पाँच सौ बार काटे जाएंगे।

ब्राह्मण ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और उसके बलि की योजना स्थगित कर दी तथा अपने शिष्यों से उसे पूर्ण संरक्षण की आज्ञा दी। किन्तु बकरे ने ब्राह्मण से कहा कि ऐसा संभव नहीं था क्योंकि कोई भी संरक्षण उसके कर्मों के विपाक को नष्ट नहीं कर सकते क्योंकि कोई भी प्राणी अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता।

जब शिष्य-गण उस बकरे को ले कर उसे यथोचित स्थान पर पहुँचाने जा रहे थे। तभी रास्ते में किनारे एक पेड़ के शाखा पर नर्म-नर्म पत्तों को देख ज्योंही बकरे ने अपना सिर ऊपर किया, तभी एक वज्रपात हुआ और पेड़ के ऊपर पहाड़ी पर स्थित एक बड़े चट्टान के कई टुकड़े छिटके। एक बड़ा टुकड़ा उस बकरे के सिर पर इतनी ज़ोर से आ लगा कि पलक झपकते ही उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

O nce a brahmin priest decided to sacrifice a goat on the occasion of the Feast of the Dead. So, he had a goat fetched and asked his pupils to bathe it in the river. When being bathed the goat first burst out into laughter but soon began to cry.

When the surprised pupils asked the goat to explain the reason for such behaviour, it promised to oblige them only in presence of the priest. So, the pupils brought the goat before the priest and asked the same question. The goat then narrated the story of its previous birth when it, too, was a brahmin priest and had sacrificed a goat on a similar occasion. As a result of that it had had his head cut off four hundred and ninety-nine times; and the present sacrifice would be its last one. So, it laughed at the prospect of   redemption from the guilt. Further, explaining the reason for its cry it said that the brahmin would be doomed for five hundred times in similar way. So, it cried for him out of sheer compassion.

The priest said, fear not O compassionate goat! I spare your life.

The goat said, Sir! You may spare me; but the evil deed of my past life shall not spare me. My head shall   be chopped off, today.

We shall protect you from being killed, said the priest.

No Sir! Weak is your protection; and strong is the force of my evil karma . My head has to be chopped off, today, said the goat.

The priest then let the goat go loose under surveillance. Soon the goat reached out its neck to browse the leaves of a bush. Just then a thunder-bolt struck the rock above the bush; and its fragment hit the neck of the goat, which tore its head off.

Mataka-Bhatta Jataka Pali Jataka No.18.

 


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