The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
062 - The Foot-Print Reader / पैरों के निशान पढ़ने वाला यक्षिणी-पुत्र

किसी वन में एक यक्षिणी रहती थी। उसे कुछ अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त थीं जो उस वन की परिधि तक ही सीमित थीं। वह वन से गुजरते राहगीरों को लूटती और उन्हें मार कर खा जाती थी।

एक दिन उस वन से एक खूबसूरत नौजवान गु रहा था। यक्षिणी ने उसे भी पकड़ लिया मगर उसे अपना भोजन नहीं बनाया बल्कि उसने उससे शादी रचायी। वह उसे जंज़ीरों से बाँध कर रखती क्योंकि उसे भय था कि वह भाग जाएगा। कुछ दिनों के बाद यक्षिणी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह पुत्र कुछ बड़ा हुआ तो उस ने उसे पैरों के निशान पढ़ने की विद्या सिखायी। वे निशान बारह वर्षो तक पढे जा सकते थे।

बालक कुछ और बड़ा हुआ। उसने अपने पिता को यक्षिणी के कैद में देखा। वह एक दिन माता की अनुपस्थिति में अपने पिता का मुक्त करा उस जंगल के बाहर भगा लाया चूंकि यक्षिणी की शक्ति वन के बाहर नगण्य हो जाती थी। अत: वह उन्हें फिर कभी पकड़ नहीं पायी। पिता और पुत्र ने वाराणसी में शरण ली। एक दिन वाराणसी के सरकारी खजाने में चोरी हुई। राजा ने तब यह घोषणा करवाई कि जो कोई भी जनता की उस सम्पति को ढूँढने में सहायता करोगा उसे यथोचित पारितोषिक दिया जाएगा।

यक्षिणी पुत्र ने तब तत्काल ही चोरों के पद-चिन्हों को पढ़ता, राजा और जनता को उस स्थान पर ले गया जहाँ खजाना छुपाया गया था। विस्मित हो सभी ने बालक की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

राजा ने तब बालक से चोरों का नाम-पता पूछा। बालक ने कहा कि चोरों का नाम बताना उचित नहीं होगा। किन्तु जब राजा ने हठ किया तो उसने चोरों का नाम बता दिया। चोर और कोई नहीं थे, बल्कि राजा और उनके पुरोहित थे। लोगों को तब राजा और पुरोहित पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उन दोनों चोरों को पीट-पीट कर मार डाला और उस बालक को अपना नया राजा बना दिया।

Padmanakusalamanava-Jataka, Mathura

Yaksini (with the head of a horse) with her son Padakusalamanava , Ajanta

O nce a queen owing to her false oath was born as a yaksini . She had a well-demarcated territory to exercise her powers. She could kill and eat people within her territory. One day, she caught hold a rich and handsome Brahmin and fell in love with him. She brought him home and married him. But whenever she went outside she chained him in her abode lest he would run away. In course of time, the Bodhisatta was born out of her womb. When growing the yakkhini empowered him with a charm to read or trace the foot-step of any person even after the lapse of twelve years.

When the son grew old enough to note the captivity of his father he felt sorry for him. Having discovered the extent of the power of his yakkhini mother, which was effective only within a certain range, he, one day, meticulously engineered a plot and escaped out of the forest with his father and began a new life in a new city.

As the boy had the ability to trace the foot-steps of any person even after the lapse of twelve years he easily entered the service of the king of Varanasi. One day, the king and his chaplain stole some public treasury and hid it in a tank. Next morning, they asked the boy to find the same. The boy easily took the people to the tank by tracing the foot-steps in the air. The people were amazed. When insisted to reveal the names of the thieves he first declined as he knew that the thieves were none other than the king and his chaplain. None the less, when pressed long by the people, he divulged the names of the two. This infuriated the mob, which in frenzy killed the king and the chaplain. The Bodhisatta was then crowned as the king.

 

See Padakusalamanava Jataka Jataka   Pali No.432


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