The Illustrated Jataka : Other Stories of the Buddha by C.B. Varma
090 -  Moggallana / मोग्गलन  

बुद्ध के दो प्रधान शिष्यों में से एक थे- मोग्गलन, जिन्हें पालि परम्परा में, महामोग्गलन भी कहा जाता है। इन्हें बुद्ध ने सारिपुत्त के साथ एक ही दिन दीक्षा दी थी और यह भी घोषणा कि थी कि ये दोनों उनके प शिष्य हैं। सारिपुत्त जहाँ अपनी बुद्धिमत्ता के लिए विख्यात थे, वहीं मोग्गलन अपनी अद्भुत चामत्कारिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। उदाहरण के लिए, वे विविध जीवन्त आकृतियों के निर्माण में समर्थ थे, कोई भी रुप धारण कर सकते थे। एक बार उन्होंने मिगरमतुपसाद नामक मठ को अपने चरण-स्पर्श मात्र से हिला दिया था। यह भू-तल के उन कुछ भिक्षुओं के लिए चेतावनी थी जो यह जानते हुए भी गल्प-कथन में मग्न थे कि स्वयं बुद्ध उस मठ के प्रथम तल पर विद्यमान हैं।

मोग्गलन और सारिपुत्त एक ही दिन जन्मे थे। इनकी माता का नाम मोग्गली (या मोग्गलानी) होने से इनका नाम मोग्गलन पड़ा। इनके गाँव के नाम की वजह से इन्हें कोलित भी कहा जाता था। मोग्गलन और सारिपुत्त के परिवारों के बीच सात पीढियों से मैत्री सम्बन्ध था, अत: ये दोनों भी शैशव से ही मित्र थे। एक बार दोनों मित्र एक नाटक (गिरग्गसमज्जा) देखने गए और उसके माध्यम से दोनों ने अनुभव किया कि 'यह विश्व भी एक नाटक ही हैं और 'सभी सांसारिक वस्तुएँ अनित्य हैं।' इस अनुभव से दोनों संसार से विरक्त हो गए। पहले ये संजय के शिष्य हुए, पर उनकी शिक्षाओं से असन्तुष्ट हो, इन्होंने सारे भारत में घूम-घूमकर उस समय के सभी विद्वानों से विचार-विमर्श किया। अन्तत:, इस सब से असन्तुष्ट दोनों ने अलग-अलग होने का निश्चय किया और प्रण लिया कि दोनों एक-दूसरे को किसी भी उल्लेखनीय अन्वेषण से अवगत करवाएंगे।

जब सारिपुत्त ने बुद्ध के एक शिष्य अस्साजी के प्रवचन सुने, तो वे उनके सिद्धान्त से बहुत प्रभावित हुए और एक सोतपन्न बन गए। वे मोग्गलन के पास पहुँचे और उन्हें अपनी उपलब्धि की सूचना दी और बुद्ध-वचन सुन, मोग्गलन भी एक सोतपन्न बन गए। दोनों संजय के पाँच सौ शिष्यों सहित बुद्ध के दर्शनार्थ चल दिए। उन सभी ने बुद्ध के दर्शन किए और उनके प्रवचन सुने और मोग्गलन एवं सारिपुत्त को छोड़, सभी अर्हत् बन गए। मोग्गलन मगध के कल्लवल के उपग्राम में चले गए। दीक्षा के एक सप्ताह के उपरान्त, समाधि की परम अवस्था में, उन्हें बुद्ध से दीक्षा प्राप्त हुई और वे भी अर्हत् बन गए। मोग्गलन समाधि की तुरीय अवस्था में बहुत जल्दी पहुँच जाते थे। इसीलिए महान् नाग नन्दोपनन्द के दमन को उनकी पारलौकिक शक्तियों का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण कहा जा सकता है।

जब देवदत्त द्वारा संघ में विभाजन की बात उठी, तो बुद्ध ने इन दो प शिष्यों को गयासीस भेजा, ताकि वे भ्रमित भिक्षुओं को लौटा पाएँ। दोनों ने पाँच सौ भिक्षुओं को संघ में वापस लौटाकर, अपने कर्त्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वहण किया। बुद्ध के पुत्र राहुल के गुरु सारिपुत्त थे, तो मोग्गलन उनके शिक्षक। सारिपुत्त और मोग्गलन ने एक-दूसरे से एक अनुरोध किया था। मोग्गलन ने सारिपुत्त के पन्द्रह दिन बाद प्रतिपदा के दिन देह-त्याग किया।

कलसिल में मोग्गलन जब अपने कक्ष में थे तो कुछ डाकुओं ने उन्हें बहुत बुरी तरह पीटा। उनका अन्त बहुत कारुणिक हुआ। किसी तरह अपनी टूटी हड्डियों वाले जर्जर शरीर को घसीटते हुए, वे बुद्ध के पास पहुँचे और उनसे इस संसार को छोड़ने की अनुमति मांगी। परम्परा कहती है कि उनका दु:खदायी अन्त इसलिए हुआ क्योंकि अपने किसी पूर्वजन्म में उन्होंने अपने बूढ़े, जर्जर और अन्धे माता-पिता को, अपनी पत्नी के दुराग्रह पर एक वन में ले जाकर पीट-पाटकर मार डाला था। ऐसा उन्होंने मोहग्रस्त होकर किया था। 
इसीलिए इस वर्तमान जन्म में उन्हें ऐसी मृत्यु प्राप्त हुई क्योंकि कर्मफल से कोई नहीं बच सकता।

जातक कथाओं में मोग्गलन कई पात्रों के रुप में चित्रित हैं- उदाहरणार्थ- इन्द्रिय जातक में किसवच्चा, कुर्रूंगमिग जातक में कछुआ, तित्तिर जातक में व्याघ्र, विधुरपंडित जातक में गरुड़राज इत्यादि।

M oggallana, popularly known as Maha Moggallana in the Pali tradition, was one of the two chief disciples of the Buddha. He was ordained along with Sariputta; and on the same day the Buddha, too, had declared that they were the Chief Disciples. As Sariputta was best known for his wisdom, Moggallana was best known for the possession of the supernatural powers. For example, he was capable of creating manifold living shapes; and assuming any form. Further, he shook the monastery called Migaramatupasada by the touch of his great toe to warn some monks who were gossiping on the ground floor despite the knowledge that the Buddha was upstairs.

Moggallana was born on the same day when Sariputta was born. He derived his name from his mother who was called Moggali (or Moggallani). He was also called Kolita, which was the name of his village. The friendship between the families of Moggallana and Sariputta existed for seven generations; and the two were the friends since their childhood. Once, the two friends went to see a mime-play ( giraggasamajja ) and realised through the play that the world itself is a drama as all the worldly things are impermanent. This realisation made them renounce the world. First, they became the disciples of Sanjaya; and when dissatisfied with his teachings they wandered all over the Indian subcontinent to discuss with the scholars of the time. Eventually, not being satisfied by them they separated with the understanding that each would inform the other of any worthy discovery.

So, when Sariputta heard a discourse of Assaji, a disciple of the Buddha, he was impressed with his doctrine and became a Sotapanna. He then went to Moggallana to inform him of his discovery; who in turn also became a Sotapanna, soon after hearing the teaching of the Buddha. The two then marched to the Buddha along with five hundred disciples of Sanjaya. They all met the Buddha and heard his discourse and became the arahatas but for the two, Moggallana and Sariputta. Moggallana then went to the hamlet of Kallavala in Magadha and a week after his ordination he, too, attained a high stage of trance, where he received the exhortation of the Buddha and finally achieved the arahatahood .

Moggallana and Sariputta on the foot of the Buddha

(Courtesy: Sakyamuni: An Exhibition of Rare Thankas Central

 Institute of Buddhist Studies Choglamsar Leh; p.20)

Moggallanas demonstration of the great supernatural power was best exemplified in the subjugation of the great serpent called the Naga Nandopananda, as he could enter the fourth stage of the trance most quickly.

When there was a schism in the Order engendered by Devadatta, the Buddha sent the two chief disciples to Gayasisa to bring back the misguided monks. Both the monks accomplished their task by bringing back all the five hundred monks to the order. If Sariputta was the preceptor of Rahula (the son of the Buddha); Moggallana was his teacher. Both Sariputta and Moggallana had a mutual request for each other. Moggallana died a fortnight after Sariputta on a new moon night.

Moggallanas end was pathetic as he was beaten and killed by the brigands in his cell in Kalasila. He then crawled and dragged his body with several crushed bones to the Buddha and sought his leave to depart from the world. According to the tradition the cause of his pathetic end was due to his gross misconduct against his old, senile and blind parents in one of his births, as he had undertaken the ill-advice of his wife to carry them to a forest and to beat them to death. He had followed that advice out of his infatuation during that birth. As no one can escape the fruits of the karma , he too had his death in the similar way in his current birth.

Moggallana is identified with numerous characters in the Jataka tales, e.g., Kisavaccha in the Indriya Jataka, the tortoise in the Kurungamiga Jataka, the tiger in the Tittira Jataka, the Garuda king in the Vidhurapandita Jataka and so on.

 


Copyright IGNCA© 2002