हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 57


IV/ A-2056

विश्वभारती पत्रिका

साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी

हिन्दी त्रैमासिक

हिन्दी भवन

शान्ति निकेतन,बंगाल

23.11.42

पूज्य पंडित जी,

              सादर प्रणाम!

       यह पत्र १५ दिन देर से लिख रहा हूँ। ८ नवंबर को लिखना उचित था। परन्तु आजकल मैं विश्वभारती पत्रिका का संपादक, लेखक, मैनेजर, क्लर्क, प्रूफरीडर- ठ्ठेदःड्डी ध्रण्ठ्ठेद्य दःदृद्य! - सब हूँ। क्या इसी को आप लोग जर्नलिस्टिक भाषा में सर्वेसर्वा कहते हैं। हाँ तो मैं इस समय सर्वेसर्वा हूँ और दम मारने की फुरसत नहीं पा रहा हूँ। लिखना-पढ़ना तो हवा हो गया है। परन्तु असन्तुष्ट नहीं हूँ।

       अब ८ नवंबर की बात सुनिए। कहते हैं आदमी १२ वर्ष मास्टरी के बाद गधा हो जाता है। अमेरिका में, सुना है, ऐसे आदमी की गवाही अदालतें नामंजूर कर देती हैं। पिछले ८ नवंबर को मैं १२ वर्ष का अध्यापक-जीवन समाप्त कर गया। उस पवित्र तिथि को आपको प्रणाम करना था, पर एक साल की सम्पादकी ने बारह वर्ष की मास्टरी को ऐसा पछाड़ा कि समय ही नहीं मिल सका। अब मेरा पक्का विश्वास है कि एक वर्ष का सम्पादक १२ वर्ष के मास्टर की अपेक्षा उक्त पदोन्नति का अधिक अधिकारी है। परन्तु आप एक साल के संपादक को वह पद दीजिए या बारह वर्ष के मास्टर को- दुहूँ हाथ मन मोदक मोरे!!    

       सो देर से सही, आज ८ नवंबर का प्रणाम आपके पास भेज रहा हूँ। लौटा न दीजिएगा। गोष्ठी वाला आपका नोट ज़रा संक्षेप करके पत्रिका में दे दिया है। आपने देखा होगा। सब दे सकता तो अच्छा होता, पर ज़रा देर से मिला। इसीलिये संक्षिप्त   कर देना पड़ा।

       हमारे नये अंक के लिये आप कुछ दे सकते तो बड़ी कृपा होती।

       आपने स्व. मुंशी अजमेरी जी के घर का पता नहीं दिया। मैं अनके स्मरण के अनुवाद को मँगाना चाहता हूँ। उसके लिये यथासाध्य कुछ सहायता भिजवाऊँगा। पत्रिका की ओर से नहीं तो पत्रिका के किसी पाठक की ओर से। और अनुवाद आपके पास हों तो भेज दें। रजिस्ट्री से।

       और सब कुशल है। आपका भेजा हुआ श्री कृष्णानंद जी गुप्ता का ग्रंथ (प्रसाद जी के दो नाटक) मिल गया है। साथ वाला पत्र उन्हें भिजवा दें। शेष कुशल है। आशा है अब आप मैलेरिया से मुक्त हो गये होंगे। पैरों को ठंड से ज़रुर बचावें। मिल सके तो परवल के पत्तों का (जड़ का नहीं) और करैले के पत्तों का साग खाइए। मैलेरिया के बाद बहुत गुणकारी है।

       मैं स्वस्थ हूँ।

आपका

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली