काशी
हिंदू
विश्वविद्यालय
26.11.51
श्रध्देय
पंडित जी,
प्रणाम!
आपको बहुत
देर से पत्र लिखता हूँ। अच्छा शिष्य न
होने के कारण ""पत्राघात""
यथासमय नहीं कर पाता आपका पत्र पाता
हूँ तो सोचता हूँ अब नियमित रुप
से लिखूँगा पर अनियमित रहना ही
अब नियम हो गया है। एक तुलसीदास
थे जो कलम ठोक कर प्रतिज्ञा कर लेते
थे- "अब लौं नसानी अब ना नसैहौं"
एक मैं हूँ जो प्रतिज्ञाओं को मेरी पलटन
देखता हूँ हताश होकर कहता हूँ,
अब तक नहीं सुधरे तो अब क्या सुधरोगे।
और फिर भी मेरा जन्म और तुलसीदास
का जन्म एक ही नक्षत्र में हुआ था। और (आप
तो कभी इधर आए ही नहीं, तो कैसे
बताऊँ)यह सिद्ध कर सकता हूँ कि
जिस मकान में रहता हूँ, उस स्थान पर
तुलसीदास जी कभी अवश्य आए होंगे।
साहित्यिक आदमी थे, मस्ती में आते
होंगे तो गढ़ कुणडेश्वर के सन्त की
भांति कभी घूमने ज़रुर निकलते
होंगे और जब संकटमोचन से चलते
होंगे तो इधर ज़रुर आ जाते होंगे।
फिर भी उनका कोई गुण मुझमें नहीं
आया। या यह भी कैसे कहूँ। एक जगह
उन्होंने कहा है- "देह सिख सिखवो
मानत, मूढ़ता अंस मोरि"। इस बात
में मैं उनका उत्तम संस्करण हूँ। उन्होंने
तो विनयवश कहा था पर मेरा
यह धर्म हो गया है।
तो मूल बात
यह है कि आपका साठवाँ वर्ष समाप्त
हुआ। एकसठवाँ शुरु हुआ। बधाई, बधाई,
बधाई। भगवान आपको शतायु करें।
मैं शान्तिनिकेतन गया था, कल परसों
ही लौट कर आया हूँ। आपसे बिना पूछे
और नितान्त डरते डरते हम लोगों
ने एक दुरभिसंधि कर ली है। आगामी
फरवरी या मार्च में हम
आपके दो चार भक्त (एक तो विनोद
जी हैं) शान्तिनिकेतन, हिंदी भवन में
एकत्र हो रहे हैं। आपको वहाँ उस समय
आना पड़ेगा। समय आप स्थिर कर दें।
हम लोग चुपचाप आपकी वर्षगाँठ मनाएँगे
और आनंदोत्सव करेंगे। इसके साथ
आजकल के आडंबर बहुल आयोजनों
को सान दें। यह विशुद्ध आनन्दोत्सव
होगा। शान्तिनिकेतन में जहाँ आपको
और मुझे द्विजत्व प्राप्त हुआ है और जहाँ
गुरुदेव और दीनबंधु के चरण रज
पड़े हैं, वहाँ शास्री मोशाय और
बढ़ दादा की पद धूलि मिल जाया करती
है, जहाँ आचार्य क्षितिमोहन सेन और
आचार्य नन्दलाल बसु की पवित्र
हँसी आज भी गूँज रही है -उसी शान्तिनिकेतन
में हम लोग मिलेंगे, हँसेगे, गाएँगे,
प्रसन्न होंगे, यही योजना है। कोई
आडंबर नहीं होगा।
बस इसमें अब
अधिक कुछ नहीं जोड़ना है। वाजपेयी
जी भी आपको पत्र लिखेंगे। शेष कुशल
है। आशा है, सानंद हैं।
आपका
हजारी
प्रसाद
पुनश्चः
राष्ट्रभाषा कोश देख रहा हूँ। सम्मति
अवश्य भेज दूँगा।