काशी
हिंदू विश्वविद्यालय,
काशी,
5.6.1953
श्रध्देय
पंडित जी,
प्रणाम!
बहुत
दिनों से आपका
पत्र नहीं मिला।
हिंदुस्तान में
भी इधर आपका
कुछ लेख नहीं
देखने को मिला।
क्या अस्वस्थ हैं
या दिल्ली
से बाहर
हैं?
श्री
डा. पीतांबर
दत्त जी बड़थ्वाल
हिंदी के बहुत
ही प्रतिभाशाली
साहित्यकार
थे। वे हिंदी
के प्रथम डाक्टर
थे और सचमुच
जो दो चार
व्यक्ति इस उपाधि
के सच्चे अधिकारी
हैं उनमें अन्यतम
थे। उनका निर्गुण
पंथ संबंधी
निबंध अब भी
बहुत महत्वपूर्ण
माना जाता
है। सम्मेलन
ने उनके द्वारा
संपादित गोरखनाथ
की वाणियों
का संकलन
छापा है। यह
पुस्तक बहुत
महत्वपूर्ण
है पर साथ
के आवेदन से
आपको मालूम
होगा कि उनका
परिवार इस
समय बड़े
कष्ट में है।
आप उनका किसी
पुस्तक पर सेन्ट्रल
गवर्नमेंट
से पुरस्कार
दिलवाने
का वातावरण
प्रस्तुत कर दें
तो बड़ा अच्छा
हो। उनके जामाता
दिल्ली में
रहते हैं उनसे
सब बातें
पूछ ले सकते
हैं। वे भी
कोई स्थान पा
जाते तो इस
परिवार का
बेड़ा पार
लगता।
शेष कुशल
है। आशा है,
प्रसन्न हैं।
आपका
हजारी प्रसाद
द्विवेदी
पुनश्चः
श्रध्देय पंडित
जी,
प्रणाम! यह
पत्र बहुत पहले
लिखा था। पड़ा
रह गया था।
अब भेज रहा
हूँ। देर आयद
तो ठीक पर
दुरस्त आयद
कि नहीं, पता
नहीं। मैं १४, १३ तक
दिल्ली आ सकता
हूँ।
शेष कुशल
है।
आपका
हजारी प्रसाद